पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में से चार में वोट डाले जा चुके हैं। शनिवार को राजस्थान में मतदान हुआ। इससे पहले मिजोरम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी मतदान हो चुका है। अब 30 नवंबर को तेलंगाना में मतदान होगा। नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। इन सब के बीच चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं की अमर्यादित बयान फिर से चर्चा में है। ‘खबरों के खिलाड़ी’ की इस बार की कड़ी में इसी पर चर्चा हुई। चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार राखी बख्शी, पूर्णिमा त्रिपाठी, राहुल महाजन, प्रेम कुमार, समीर चौगांवकर और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
पूर्णिमा त्रिपाठी: भाषण के दौरान भीड़ की तालियों के चलते कई बार नेता ‘कैरिड अवे’ हो जाते हैं। विश्व कप के दौरान जो शब्द चर्चा में था, उसे राहुल गांधी ने इस्तेमाल किया। भाजपा के आरोप पर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के ‘मूर्खों का सरदार’ वाले बयान का जिक्र करके पलटवार किया। पार्टी के बड़े नेताओं को इस तरह के बयानों से बचना चाहिए।
राहुल महाजन: कुछ शब्द इसलिए भी बोले जाते हैं जिससे संबंधित नेता की इमेज बिल्डिंग की जाती है। जैसे- राहुल गांधी के साथ एक शब्द को जोड़कर उनकी छवि खराब करने की कोशिश की गई। इसी तरह की बहुत सी चीजें पहले होती रही हैं। गुजरात चुनाव के दौर से ही प्रधानमंत्री अपने खिलाफ बोले जाने वाले शब्दों का बहुत अच्छे से इस्तेमाल करते रहे हैं। इसी तरह से कांग्रेस ने भी शब्दों का इस्तेमाल करने की कोशिश शुरू की है। हमारे देश में मीडिया ने हमेशा से ‘डिस्कोर्स’ को प्रभावित किया है। सोशल मीडिया भी एक मीडिया है, वह भी प्रभावित करता है। सोशल मीडिया को अगर हम इसके लिए दोष देंगे तो यह सही नहीं होगा। यह नेताओं को तय करना होगा कि उन्हें क्या उठाना है और क्या नहीं।
प्रेम कुमार: जब राहुल ‘पनौती’ शब्द पर बोल रहे थे, तब सोशल मीडिया पर ये शब्द ट्रेंड कर रहा था। निश्चित रूप से ऐसे शब्दों का प्रयोग नाजायज होगा। एक बात ये भी आती है कि ऐसे शब्दों के प्रयोग पर सजा क्या सिर्फ कांग्रेस को ही देना उचित है? प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति पूरे गांधी परिवार को हत्यारा बता रहा है, उस पर चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। एक तरफ से शब्द के प्रयोग होने पर नोटिस होता है, दूसरे तरफ से ऐसा होने पर कोई कार्रवाई नहीं होती?
अवधेश कुमार: राजनीति विचारों के स्तर पर हो सकती है, लेकिन ‘पॉकेटमारों का गैंग’ कहना अपराध नहीं है तो क्या है? हमे निष्पक्ष रहकर इस पर विचार करना होगा। देश में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी का सबसे बड़ा नेता अगर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना बेहद चिंताजनक है। राजनीति में कठोर से कठोर बात कहने का बेहतर तरीका है। कोई भी बात किस तरह कही जाती है। उससे उसके भाव बदल जाते हैं।
समीर चौगांवकर: जिस तरह से नेताओं ने बयान आ रहे हैं वह निश्चित रूप से चिंता का विषय है। सभी राजनीतिक दलों को यह देखना चाहिए कि आरोप-प्रत्यारोप का स्तर इतना नीचे नहीं जाए। आने वाले 90 दिनों में लोकसभा के चुनाव भी होने हैं। उस वक्त तो और आरोप-प्रत्यारोप और बढ़ेंगे। मुझे लगता है कि सभी राजनीतिक दलों को इससे बचना चाहिए और चुनाव आयोग को इस पर लगाम भी लगानी चाहिए।