चीन सीमा से सटे वाइब्रेंट गांवों से ग्राउंड रिपोर्ट: सूने हो रहे गांव फिर बस रहे; 4जी नेटवर्क, बिजली, अस्पताल, स्कूल… अब यहां सबकुछ

नीति/चुशुल/किबिथू25 मिनट पहलेलेखक: मुदस्सिर कुल्लू/मनमीत/प्रभाकर मणि तिवारी

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केंद्र की मोदी सरकार ने चीन सीमा यानी LAC से लगे गांवों को डेवलप करने के लिए वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम शुरू किया है। इसके तहत अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के 19 जिलों के 46 ब्लॉक में 2,967 गांवों को चुना। अब इनका कायापलट हो चुका है।

अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और लद्दाख में एलएसी के पास बसे जो गांव सूने हो रहे थे, वे फिर बस रहे हैं। अब यहां 4जी नेटवर्क, 24 घंटे बिजली, अस्पताल, स्कूल… सबकुछ है।पर्यटक भी यहां बेरोकटोक जाने लगे हैं। पढ़िए इन्हीं गांवों से ग्राउंड रिपोर्ट….

किबिथू : न फोन था, न बिजली; पहले बमुश्किल 10 परिवार थे

देश की आखिरी बेकरी... इसे सेना ने ओपन किया है।

देश की आखिरी बेकरी… इसे सेना ने ओपन किया है।

अरुणाचल प्रदेश में लोहित नदी के किनारे बसा अंजाव जिले का किबिथू गांव चीन बॉर्डर से सिर्फ 20 किमी दूर है। यहां अभी 26 परिवार रहते हैं। आबादी 143 है। पहले बमुश्किल 10 परिवार थे। न फोन था, न बिजली। पहाड़ों के रास्ते पैदल ही पहुंच पाते थे। जब ग्रामीण पलायन करने लगे तो सुरक्षा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील इलाका खाली होने लगा था।

वाइब्रेंट स्कीम के तहत यहां कई विकास कार्य हो चुके हैं। अब 5 मोबाइल नेटवर्क टावर हैं। बॉर्डर पर पहली बेकरी सेना ने खोली है। इसे चला रहे प्रेम कुमार सोनम कहते हैं कि ऑप्टिकल फाइबर केबल इसी महीने बिछ जाएगी। पहले हम लोग गांव से बाहर नहीं जाते थे, अब पक्की सड़कें हैं। 47 सामान्य और 16 बड़ी सड़कें बन रही हैं।

जिला उपायुक्त तालो जेरांग कहते हैं कि यहां 370 करोड़ के काम होने हैं। स्वास्थ्य केंद्र, 8वीं तक स्कूल, बैडमिंटन कोर्ट बन चुके हैं। 24 घंटे बिजली रहती है। हम होम स्टे भी शुरू करा रहे हैं। स्कूल इस साल 10वीं तक हो जाएगा। शिक्षक बाहर न जाएं, इसलिए गांव में ही उनके लिए घर बनाए हैं।

सड़कें बनने से अब पर्यटक भी आने लगे हैं। पलायन रोकने के लिए ग्रामीणों को सेना में पोर्टर बनाया है। लोगों को खेती के आधुनिक तरीके सिखाए हैं। यह छोटा सा कस्बा 1962 के भारत-चीन युद्ध में टकराव का प्रमुख केंद्र था। लोहित नदी के दूसरे किनारे पर आपको सामने चीन की सैन्य चौकी दिख जाएगी।

नीती : पहले 8 महीने तक देश से कटा रहता था

पर होने के चलते नीती को देश का पहला गांव भी कहते हैं।

पर होने के चलते नीती को देश का पहला गांव भी कहते हैं।

चीन बॉर्डर से 54 किमी दूर नीती वैली में बसे नीती गांव में अब आप कभी भी आ-जा सकते हैं। पहले इसके लिए इनर लाइन परमिट लेना पड़ता था। बाॅर्डर पर होने के चलते इसे देश का पहला गांव भी कहते हैं। यह जगह 12 महीने गुलजार रहे, इसलिए 24 घंटे मोबाइल कनेक्टिविटी, वाई-फाई, होम स्टे शुरू कर दिए गए हैं। पक्की इमारतें बन रही हैं।

राज्य के 51 गांवों में 758 करोड़ रु. में विकास के काम हो रहे हैं। नीती गांव से इसकी शुरुआत हुई है। यहां पहुंचने के लिए पक्की सड़क बन चुकी है। स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र का काम चल रहा है, जबकि ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने के लिए पोल्ट्री फार्म, भेड़-मछली पालन, फूड प्रोसेसिंग सेंटर और वुलन हैंडीक्राफ्ट की यूनिटें बनाई जा रही हैं।

नीती वैली की सीमांत सड़कों को टू-लेन रोड से जोड़ा जा रहा है। पक्की सड़क बन चुकी है। स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र का काम चल रहा है, जबकि ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने के लिए पोल्ट्री फार्म, भेड़-मछली पालन, फूड प्रोसेसिंग सेंटर और वुलन हैंडीक्राफ्ट की यूनिटें बनाई जा रही हैं। नीती घाटी की सीमांत सड़कों को टू-लेन रोड से जोड़ा जा रहा है।

चुशुल: सभी घर पक्के बने; एक फोन पर मिनटों में गांव पहुंच जाती है सेना

1300 की आबादी वाला यह गांव चीन सीमा से सिर्फ 4 किमी दूर है।

1300 की आबादी वाला यह गांव चीन सीमा से सिर्फ 4 किमी दूर है।

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से जुड़े लद्दाख के चुशुल गांव को गलवान झड़प के बाद से प्राथमिकता के आधार पर तैयार किया जा रहा है। यहां 1300 करोड़ रु. के विकास कार्य हो चुके हैं। चुशुल चीन सीमा पर लद्दाख के आखिरी गांवों में से एक है।

यहां के काउंसिल कोंचोक स्टेंजिन बताते हैं कि भारतीय सेना और स्थानीय लोगों की मदद से चुशुल की तस्वीर बदल गई है। यहां मोबाइल नेटवर्क, ऑल वेदर रोड बन चुकी है। स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल बन रहे हैं। लगभग सभी घर अब पक्के हैं।

1300 की आबादी वाले और चीन सीमा से सिर्फ 4 किमी दूर इस गांव में मुख्यत: चरवाहे रहते हैं। पहले चीन सेना कई बार यहां घुस आती थी, लेकिन जब से लोगों का पलायन रुक और नेटवर्क डेवलप हुआ, तब से घुसपैठ की घटनाएं नहीं हो रहीं।

चुशुल के रिंगजिंन टेनजिग कहते हैं कि किसी भी मौसम में यहां कार से पहुंच सकते हैं। हम सेना को आसानी से मदद पहुंचा सकते हैं। एक वरिष्ठ सैन्य अफसर ने बताया कि चुशुल समेत 17 गांवों को तैयार किया जा रहा है।

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