जयराम रमेश बोले- नई संसद को मोदी मल्टीप्लेक्स कहना चाहिए: नए आर्किटेक्चर से संविधान की हत्या हुई; नड्‌डा का जवाब- कांग्रेस की सोच घटिया

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नई दिल्ली2 घंटे पहले

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कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने शनिवार को संसद की पुरानी और नई इमारत की तुलना की। उन्होंने पुरानी इमारत को बेहतर बताया। उन्होंने कहा कि नई संसद, जिसे बहुत जोर-शोर के साथ लॉन्च किया गया था, वह PM मोदी के उद्देश्यों को अच्छी तरह पूरा कर रही है। इसे मोदी मल्टीप्लेक्स या मोदी मेरियट कहा जाना चाहिए।

एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने कहा कि नई संसद में कार्यवाही शुरू होने के चार दिन बाद ही संसद के दोनों सदनों और लॉबी तक में मैंने जो देखा उसे संवाद की मौत कह सकते हैं। अगर आर्किटेक्चर से संविधान मर सकता है तो PM मोदी संविधान को दोबारा लिखे बिना उसकी हत्या करने में सफल हुए हैं।

इसे लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा ने कहा कि कांग्रेस के निचले स्तर के मुकाबले में भी ये बेहद घटिया सोच है। ये और कुछ नहीं बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की उम्मीदों का अपमान है। वैसे भी ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने पार्लियामेंट विरोधी बात कही है। 1975 में भी उन्होंने ये कोशिश की थी, पर बुरी तरह विफल हुई।

पुरानी इमारत का दिव्य आभामंडल था, जो नई इमारत में नहीं
जयराम ने कहा कि नई बिल्डिंग में एक दूसरे को देखने के लिए बाइनोकुलर्स की जरूरत पड़ेगी क्योंकि हॉल छोटे नहीं हैं, वे उतने आरामदायक नहीं हैं। संसद की पुरानी इमारत का न सिर्फ एक दिव्य आभामंडल था, बल्कि, वह बाचतीत को बढ़ावा देता था। सदनों, सेंट्रल हॉल और बरामदों के बीच चलना आसान था।

64 हजार 500 वर्ग मीटर में बना नया संसद भवन चार मंजिला है।

64 हजार 500 वर्ग मीटर में बना नया संसद भवन चार मंजिला है।

सांसदों के बीच आत्मीयता को कमजोर करती है नई इमारत
उन्होंने ये भी कहा कि सदन को सफलता से चलाने के लिए सांसदों के बीच जिस तरह की बॉन्डिंग होनी चाहिए, ये नई इमारत उस बॉन्डिंग को कमजोर करती है। दोनों सदनों के बीच तेज समन्वय बिठाना बहुत जटिल हो गया है। पुरानी इमारत में अगर आप खो जाएं तो रास्ता ढूंढना बहुत आसान था, क्योंकि इमारत गोल थी। नई इमारत में अगर आप भटक गए, तो भूल-भुलैया में गुम हो जाएंगे।

पुरानी इमारत में खुलापन था, नई इमारत में घुटन का अहसास होता है
कांग्रेस नेता ने कहा कि पुरानी इमारत आपको स्पेस और खुलापन देती थी, जबकि नई इमारत में घुटन का अहसास होता है। संसद में यूंही बैठने का आनंद ही गायब हो गया है। नया संसद भवन तकलीफ-देह और दुखदायी है। मुझे यकीन है कि अन्य पार्टियों के मेरे साथी भी ऐसा महसूस करते होंगे।

लोकसभा और राज्यसभा में सदन की कार्यवाही देखने के लिए बड़ी-बड़ी दर्शक दीर्घाएं बनाई गई हैं।

लोकसभा और राज्यसभा में सदन की कार्यवाही देखने के लिए बड़ी-बड़ी दर्शक दीर्घाएं बनाई गई हैं।

सचिवालय के स्टाफ के लोगों के लिए सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया
उन्होंने कहा कि मैंने सचिवालय में स्टाफ के लोगों से सुना है कि नई इमारत के डिजाइन में ऐसी कई सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया है, जो उनके काम के लिए जरूरी हैं। जब आप उन लोगों की राय नहीं लेते हैं, जिन्हें इमारत का इस्तेमाल करना है तो ऐसा ही होता है। उम्मीद है जब 2024 में सत्ता परिवर्तन होगा तो संसद की नई इमारत को इस्तेमाल करने का बेहतर विकल्प मिल पाएगा।

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