बेटे की लाश पर कपड़े का टुकड़ा तक नहीं था: बाइक लड़ने पर हुआ विवाद; जिसकी हत्या हुई उसके दो भाइयों को उम्रकैद, एक को नौकरी

मुजफ्फरनगर3 मिनट पहलेलेखक: राजेश साहू और रक्षा सिंह

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मुजफ्फरनगर का कवाल गांव। सचिन पूजा का सामान लेने बाजार गया। रास्ते में उसे छोटा भाई गौरव स्कूल से आते हुए दिखा। सचिन और गौरव साथ में घर जाने लगे। घर से करीब 1 किलोमीटर पहले गौरव की साइकिल शाहनवाज की बाइक से टकरा गई। शाहनवाज को गुस्सा आया। इधर सचिन और गौरव भी पीछे नहीं हटे। गाली-गलौज हुई। आस-पास के लोग इकठ्ठा हुए तो मारपीट शुरू हो गई।

भीड़ से बचकर शाहनवाज वहां से निकला। पास में सैलून था। वो वहां से छूरा लेकर आया। सचिन ने शाहनवाज का हाथ मोड़ा और छूरा छीनकर उसे ही मार दिया। शाहनवाज गिरकर तड़पने लगा। आसपास के लोगों ने खून देखा तो सचिन-गौरव को पीटने लगे। दोनों की मौके पर ही हत्या कर दी। सचिन और गौरव की खून से लथपथ लाश सड़क पर पड़ी थी। शरीर पर एक कपड़ा तक नहीं बचा था। कुछ देर बाद… शाहनवाज की भी हालत बिगड़ने लगी। उसने भी दम तोड़ दिया।

एक छोटे से विवाद ने तीन युवा लड़कों की जान ले ली। इन तीन हत्याओं की जानकारी जैसे ही फैली, लोगों में आक्रोश भर गया। मामूली विवाद से हत्या तक पहुंचा मामला सांप्रदायिक हो गया। पंचायतें शुरू हुईं। इसके बाद जो हुआ वह न सिर्फ मुजफ्फरनगर बल्कि पूरे देश के लिए शर्मसार करने वाला बन गया। 62 लोग मारे गए। 50 हजार लोग बेघर हो गए। कौमी एकता की सैकड़ों बैठकें हुई। लेकिन आज भी हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे को शक की नजर से देखते हैं।

दंगे के 10 साल बीत गए। दैनिक भास्कर की टीम कवाल पहुंची। सचिन-गौरव और शाहनवाज के घर गई। उस दिन की पूरी कहानी क्या थी, आइए पुराने पन्नों को पलटते हैं…

वो जानते थे ये गांव के लड़के हैं फिर भी पीट-पीटकर मार डाला
मुजफ्फरनगर के कवाल गांव की आबादी करीब 12 हजार है। इसमें आधे मुस्लिम और आधे हिंदू हैं। गांव की आबादी घनी है, इसलिए कहीं कोई हिंदू-मुस्लिम में इलाका नहीं बंटा। सभी एक दूसरे के साथ ही रहते हैं। कवाल गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर मलिकपुरा गांव है। यह भी कवाल ग्राम पंचायत का ही हिस्सा है। मलिकपुरा में करीब 5-7 घर हैं। सभी जाट बिरादरी के लोगों का है। यहीं चौधरी सचिन तालियान का घर था। सचिन का ममेरा भाई चौधरी गौरव तोमर यहीं रहकर पढ़ाई करता था।

कवाल गांव में हर धर्म के लोग मिलकर रहते थे, इसलिए कभी कोई सांप्रदायिक विवाद जैसी चीज नहीं हुई। 27 अगस्त 2013 को भी सबकुछ सामान्य था। 28 अगस्त को जन्माष्टमी थी। 26 साल के सचिन पत्नी और मां के कहने पर बाजार से पूजा का सामान लेने गए थे। 17 साल का गौरव वहीं स्कूल से लौट रहा था। रास्ते में उनकी साइकिल शाहनवाज की गाड़ी से टकरा गई। जिसके बाद विवाद हो गया। सचिन-शाहनवाज एक दूसरे से भिड़ गए।

शाहनवाज भागा, पास की दुकान से छूरा निकाला और सचिन पर हमला करना चाहा। सचिन ने छूरा छीना और उसके ही पेट में मार दिया। शाहनवाज जमीन पर गिर गया। उसका खून बहने लगा। इसे देखकर उसके घर और आसपास के लोग आए और सचिन-गौरव को बुरी तरह से पीटने लगे। उनके कपड़े फट गए लेकिन लाठी-डंडे नहीं रुके। धारदार हथियारों से मारा। तब तक मारा जब तक कि दोनों की मौत नहीं हो गई। दूसरी तरफ शाहनवाज को हॉस्पिटल ले गए जहां उसकी भी मौत हो गई। तीन हत्याओं से इलाके में सनसनी फैल गई।

ऊपर जो बातें लिखी है वह हमें सचिन की मां मुनेश और पिता बिसन सिंह ने बताया। मुनेश हमें आगे बताती हैं, “हमारा किसी से कोई विवाद नहीं था। हमने 2010 में सचिन की शादी कर दी। 2012 में उसका एक बेटा हुआ। घर का कोई भी सामान लाना होता था तो कवाल से ही होकर जाना पड़ता था। हमें उस दिन के विवाद के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। जब सब हो गया तब हमें पता चला कि हमारे बच्चों को मार दिया गया। जिन लोगों ने उन्हें मारा वो जानते थे कि ये इसी गांव के बच्चे हैं।”

बिसन सिंह गन्ने से गुड़ बनाने का काम करते हैं। इस वक्त वह बीमार हैं। 10 साल पहले की उस घटना को लेकर कहते हैं, “हमारा बेटा मारा गया, हमारा भांजा मारा गया। हमारे ऊपर ही केस लगा दिया गया। हम ढाई महीने तक जेल में रहे। अब भी केस चल रहा है।” हमने पूछा कि उसके बाद जो पंचायत हुई थी क्या उसमें गए थे? बिसन कहते हैं, “हम नहीं गए थे जी, न ही हमें पंचायत में बुलाया गया।”

  • इसके बाद हम शाहनवाज के घर भी पहुंचे। उनके पिता-भाई ने क्या कहा उसे जानने से पहले हम दोबारा 10 साल पहले की घटना पर जानते हैं।

लड़कों की मौत पर रोटियां सेंक-सेंककर सब नेता बन गए
27 अगस्त को सचिन-गौरव की लाश कवालपुर से सीधे पोस्टमॉर्टम हाउस गई। पुलिस ने मौके से 14 लोगों को हिरासत में लिया। स्थानीय लोग कहते हैं कि उस वक्त सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान के फोन के बाद उन लोगों को छोड़ दिया गया।

28 अगस्त को सचिन-गौरव की लाश मलिकपुरा पहुंची। करीब 10 हजार से ज्यादा लोग गांव पहुंचे। अंतिम संस्कार होने के बाद भीड़ उग्र हो गई। कवाल गांव में हंगामा कर दिया। वहां की दुकानों और घरों में तोड़फोड़ की। कई लोगों को जमकर पीटा।

29 अगस्त तक यह लड़ाई सांप्रदायिक हो गई। स्थिति को भांपते हुए तत्कालीन सपा सरकार ने गांव में भारी फोर्स तैनात कर दी। एक दिन पहले ही जिले के कप्तान मंजिल सैनी और डीएम सुरेंद्र सिंह जाट को हटा दिया गया था।

इनके स्थान पर डीएम कौशलराज शर्मा और एसएसपी सुभाषचंद दुबे ने कमान संभाली। कोशिश थी कि किसी भी तरह से हिंसा न भड़के। 30 अगस्त को शुक्रवार था। मुस्लिम संगठनों ने मुजफ्फरनगर शहर में शहीद चौक पर शाहनवाज की मौत पर शांति सभा का आयोजन किया। कोशिश थी कि इस सभा के जरिए दोनों धर्मों के बीच फैले तनाव को कम किया जाए।

कवाल गांव में एंट्री लेते ही यह घर नजर आता है। पहले यहां लोग रहते थे, अब खंडहर बन गया है।

कवाल गांव में एंट्री लेते ही यह घर नजर आता है। पहले यहां लोग रहते थे, अब खंडहर बन गया है।

…लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस शांति सभा में उस वक्त के सपा प्रदेश सचिव राशिद सिद्दीकी, बीएसपी विधायक मौलाना जमील, कांग्रेस नेता सैदुजामा, पूर्व सांसद कादिर राणा पहुंचे। मंच पर माइक मिला तो सभी ने बेहद उग्रता के साथ भाषण दिया।

पूरी घटना को राजनीतिक एंगल देने की कोशिश की। किसी ने देख लेने की बात कही तो किसी ने कहा कि हम किसी से दबने वाले नहीं हैं। कुल मिलाकर इस शांति सभा ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। अगले दिन यानी 31 अगस्त को नगला मंदौड़ के भारतीय किसान इंटर कॉलेज में जाटों ने शोक सभा की। यहां भी जो भाषण हुआ उसमें बदला लेने जैसी बातों पर विशेष जोर दिया गया।

  • इसके बाद पंचायतों का दौर शुरू हुआ। एक दूसरे को सबक सिखाने की बात कही गई। 7 सितंबर को नगला में दोबारा पंचायत हुई। इसके बाद मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत में जमकर हिंसा हुई। वह हम कल ‘मुजफ्फरनगर दंगा पार्ट-2’ में आपको विस्तार से बताएंगे। आज अब शाहनवाज की बात। जिसकी हत्या भी गौरव-सचिन के साथ हुई थी।

मैं अपने बेटे को मार खाते हुए देख रहा था
हम मलिकपुरा के बाद कवाल गांव पहुंचे। घर के बरामदे में शाहनवाज के पिता सलीम मिले। वो उस दिन की घटना को याद करते हुए कहते हैं, “हम और शाहनवाज घर से साथ ही निकले। मैं नमाज पढ़ने मस्जिद चला गया और वह रास्ते में रुक गया। फिर 8 लोग आए, उनके हाथों में हथियार थे। उन्होंने मेरे बेटे को मारना शुरू कर दिया। मैं देख रहा था पर कुछ कर नहीं पाया। उन्होंने बेटे के पेट में छूरा घोंप दिया। इसके बाद वह भागने लगे। भीड़ ने दो लोगों को पकड़ लिया और उनको पीटा, जिससे उनकी मौत हो गई।”

सलीम पुलिस और मीडिया पर पक्षपात का आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं, “हमने अपने बेटे की हत्या की शिकायत पहले की लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायत लिखी। हमने जिन 6 नामों को लिखवाया पुलिस ने उनके खिलाफ बाद में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। हमने बेटे के लिए बहुत लड़ाई लड़ी। 2018 में जाकर हमारा मामला शुरू हुआ। आरोपी गिरफ्तार हुए लेकिन 2 महीने में ही जमानत मिल गई। अब तक गवाही ही नहीं हो रही।”

शाहनवाज का छोटा भाई सलमान बताता है, भइया चेन्नई में रहते थे। वहां कपड़ों की फेरी लगाते थे। अगस्त के पहले हफ्ते में ईद के लिए आए थे। 26 अगस्त को उनको मेरे ही साथ चेन्नई निकलना था। उनकी तबीयत खराब हो गई। सांस में कुछ दिक्कत थी इसलिए उन्होंने कहा, ‘तुम जाओ, हम 2-3 दिन में आ जाएंगे।’ मैं महाराष्ट्र के बल्लार शाह स्टेशन पर पहुंचा था तभी पता चला कि भइया के साथ ऐसी घटना हो गई। उन्हें जाटों ने मार दिया। हम वापस दिल्ली आए। हमें घर नहीं आने दिया तो हम देवबंद मामा के घर चले गए।

शाहनवाज के दो भाइयों को उम्रकैद, एक को सरकारी नौकरी
इस मामले को 10 साल बीत गए। शाहनवाज की हत्या हुई इसलिए भाई शहजाद को पीडब्ल्यूडी विभाग में नौकरी मिली। सरकार से 12 लाख रुपए मुआवजा मिला। वहीं दो भाइयों पर सचिन-गौरव की हत्या का आरोप लगा। उन्हें पुलिस ने घटना के अगले ही दिन गिरफ्तार कर लिया और फिर कभी जमानत पर बाहर नहीं निकले। 8 फरवरी 2019 को शाहनवाज के भाई जहांगीर और नदीम के साथ परिवार के ही मुजम्मिल, मुजस्सिम, फुरकान, अफजाल और इकबाल को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।

फिलहाल इस मामले में दोनों ही पीड़ित परिवार दुखी हैं। सचिन के पिता को लगता है कि उनके बेटों के हत्यारों को और कड़ी सजा मिलनी चाहिए। वहीं शाहनवाज के पिता चाहते हैं कि उनके बेटे की हत्या करने वाले कम से कम जेल में तो जाएं। आखिर में मुजफ्फरनगर दंगों की टाइमलाइन देखिए। कल हम ‘मुजफ्फरनगर दंगा पार्ट-2’ में हम उन लोगों की कहानियां बताएंगे जिन्होंने अपनों को खोया, अपना घर छोड़कर 10 साल पहले भागे और आजतक लौट नहीं पाए।

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