ब्रिटेन के ऋषि का सनातन को प्रणाम: भारतीय रंग में रंगे ऋषि-अक्षता, मंदिर जाने से लेकर पहनावे तक ने जीता दिल

जी20 शिखर सम्मेलन रविवार को समाप्त हो गया। इस सम्मेलन में जिस नेता ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं वो हैं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक। ब्रिटिश प्रधानमंत्री का सनातन रंग सबसे ज्याद सुर्खियों में रहा। भारत आने से पहले से लेकर भारत से वापस लौटने तक सुनक कई बार सनातनी चोले में दिखे। आइये जानते हैं इन मौकों को… 



भारत आने से पहले कहा- मुझे हिन्दू होने पर गर्व

भारत दौरे पर आने से पहले सुनक ने एक विशेष साक्षात्कार दिया। इसमें उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी भारतीय जड़ों और भारत से संबंधों पर बेहद गर्व है। उन्होंने कहा मेरी “पत्नी भारतीय हैं और एक गौरवान्वित हिंदू होने के नाते, मेरा हमेशा भारत और भारत के लोगों से जुड़ाव रहेगा। मुझे अपनी भारतीय जड़ों और भारत से अपने संबंधों पर बेहद गर्व है।”


भारत पहुंचते ही कहा- मैंने भाई-बहनों के साथ मनाई राखी 

भारत पहुंचने पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एक बार फिर सनातन को प्रणाम करते नजर आए। उन्होंने यहां पहुंचने के बाद समाचार एजेंसी एएनआई को साक्षात्कार दिया। इस दौरान उन्होंने कहा, “मुझे हिंदू होने पर गर्व है और मेरी परवरिश इसी तरह हुई है। उम्मीद है कि अपनी इस भारत यात्रा में मैं मंदिर भी जा पाऊं। हाल ही में मैंने और मेरे बहन-भाइयों ने रक्षाबंधन मनाया। अभी भी मेरे पास सारी राखियां हैं। हालांकि, इस बार वक्त की कमी की वजह से मैं अच्छी तरह से जन्माष्टमी नहीं मना पाया। लेकिन मैं मंदिर जाकर इसकी भरपाई जरूर कर सकता हूं।”


पूरी हुई मंदिर जाने की आस

सुनक ने एएनआई को दिए साक्षात्कार के दौरान मंदिर जाने की उम्मीद जताई थी। रविवार को उनकी यह आस भी पूरी हो गई। ऋषि सुनक और उनकी अक्षता मूर्ति रविवार सुबह-सुबह अक्षरधाम मंदिर पहुंच गए। मंदिर में दर्शन करने के साथ ही दोनों ने गोपूजा की और प्रधानमंत्री सुनक कलाई पर कलावा बंधवाते नजर आए। ऋषि और उनकी पत्नी 45 मिनट मंदिर में रहे।


जमीन पर माथा टेककर भगवान को नमन 

ब्रिटिश PM ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता ने अक्षरधाम मंदिर में हाथ जोड़कर पूजा की। दोनों ने आरती भी की। सुनक ने जमीन पर माथा टेककर भगवान को नमन किया। इसके साथ ही ब्रिटिश पीएम ने संतों के साथ फोटो भी खिंचवाई। 

उन्होंने मुख्य मंदिर के पीछे स्थित एक और मंदिर में जलाभिषेक किया। अक्षरधाम मंदिर के निदेशक ज्योतिंद्र दवे ने कहा कि उनकी आंखों, क्रियाओं में जो प्रेम, भक्ति थी वह सच में एक भक्त की थी। एक राजकीय नेता की नहीं थी। एक प्रधानमंत्री की नहीं थी।