मणिपुर में फिर हिंसा, फायरिंग में 2 लोगों की मौत: दोनों कुकी समुदाय के; लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद पहली घटना

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इम्फाल3 मिनट पहले

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गोलीबारी से खुद को बचाने के लिए लोग छुपते नजर आए। - Dainik Bhaskar

गोलीबारी से खुद को बचाने के लिए लोग छुपते नजर आए।

मणिपुर में हिंसा लगातार जारी है। शनिवार (13 अप्रैल) को एक बार फिर हुई हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई। पूर्वी इंफाल और कांगपोकपी जिले के बीच सटे मोइरंगपुरेल इलाके में हथियारबंद दो समूहों के बीच गोलीबारी हुई।

बताया गया है कि जिन लोगों की मौत हुई है वे दोनों कुकी समुदाय से हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के चलते आदर्श आचार संहिता लागू है, लेकिन बीते दो दिन से मणिपुर में अलग-अलग इलाकों में गोलीबारी की घटना हुई।

हिंसा वाले इलाके में सुरक्षाबल तैनात हैं।

हिंसा वाले इलाके में सुरक्षाबल तैनात हैं।

15 अप्रैल को गृह मंत्री अमित शाह का दौरा
15 अप्रैल को गृह मंत्री अमित शाह का मणिपुर दौरा है। ऐसे में ताजा हिंसा के कारण तनाव का माहौल हो गया है। वहीं, 19 अप्रैल को पहले फेज में इनर और आउटर मणिपुर लोकसभा सीट के लिए वोटिंग होनी है। केंद्र सरकार ने सुरक्षाबल की तैनाती भी की है। इसके बावजूद हिंसा हो रही है।

हिंसा के बाद 65 हजार से ज्यादा लोगों ने घर छोड़ा
मणिपुर में अब तक 65 हजार से अधिक लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। 6 हजार मामले दर्ज हुए हैं और 144 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। राज्य में 36 हजार सुरक्षाकर्मी और 40 IPS तैनात किए गए हैं। पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों में कुल 129 चौकियां स्थापित की गईं हैं।

इंफाल वैली में मैतेई बहुल है, ऐसे में यहां रहने वाले कुकी लोग आसपास के पहाड़ी इलाकों में बने कैंप में रह रहे हैं, जहां उनके समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं। जबकि, पहाड़ी इलाकों के मैतेई लोग अपना घर छोड़कर इंफाल वैली में बनाए गए कैंपों में रह रहे हैं।

4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।

मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।

नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।

सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।

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‘मणिपुर में हिंसा और लड़ाई को एक साल होने वाला है। सरकार अब तक इसे नहीं रोक पाई। हम लोग डरकर जीते हैं। परिवार को साथ नहीं रख पा रहे। बच्चों की पढ़ाई रुक गई है। बिजनेस ठप है। कमाई की बात तो क्या करूं। हम लोग 10 साल पीछे चले गए हैं। हर हाल में जी लेंगे, बस सरकार शांति करवा दे।’

मणिपुर के आखिरी गांव मोरे में रहने वाले केशव तमिल कम्युनिटी से हैं। म्यांमार बॉर्डर से सटा मोरे गांव कभी टूरिस्ट से भरा रहता था, अब सिर्फ सन्नाटा है। जले घर हैं और हर तरफ हिंसा के निशान। ये हिंसा मैतेई और कुकी के बीच 3 मई 2023, यानी 11 महीने से चल रही है। मैतेई इंफाल में रहते हैं और हिल एरिया कुकी का घर है। दोनों कम्युनिटी के बीच सेना के जवान हैं, ताकि दंगे न हों। पूरी खबर पढ़ें

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