हिमाचल में इसलिए हुई तबाही: एक्सपर्ट ने गिनाई वजह; नॉन-माइनिंग एक्टिविटी, FCA न मिलना, वर्टिकल कटिंग, हिमालय के ग्रोइंग स्टेज में होने से आई आपदा

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देवेंद्र हेटा, शिमलाएक घंटा पहले

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हिमाचल प्रदेश में कुछ हद तक यह तबाही मैन-मेड लग रही है। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार, गवर्नमेंट डिपार्टमेंट, फोरलेन निर्माता कंपनी और स्थानीय जनता भी कुछ हद तक दोषी है। यही वजह है कि देवभूमि की जनता ने सदी की सबसे भीषण तबाही देखी है।

एक्सपर्ट के अनुसार, अत्यधिक बारिश के साथ साथ हिमालय का बच्चे की ग्रोइंग स्टेज में होना, शिमला व सोलन में चिकनी मिट्टी तथा कुल्लू व मंडी जिले में ब्यास में माइनिंग की इजाजत नहीं मिलना तबाही की सबसे बड़ी वजह है। इंडस्ट्री डिपार्टमेंट के जियोलॉजिस्ट अतुल शर्मा ने इस भीषण तबाही के कारण अनेक कारण गिनाए। जानने को पढ़िए भास्कर की रिपोर्ट..

  • अतुल शर्मा के अनुसार, हिमाचल में फोरलेन के लिए जितनी जमीन जरूरी होती है, उतनी का अधिग्रहण नहीं किया जाता। ऐसा पैसे बचाने के लिए किया जा रहा है। कम जमीन के कारण सड़क किनारे जितनी भूमि खाली छोड़नी जरूरी होती है, वह नहीं छोड़ पाते। वहीं वर्टिकल कटिंग से भी बचना हो तो इसके लिए ज्यादा जमीन जरूरी होती है। मगर, पर्याप्त जमीन नहीं होने के कारण ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की वर्टिकल कटिंग की जा रही है। यही फोरलेन किनारे तबाही का कारण है।
  • हिमालय के पहाड़ अभी छोटे बच्चे की तरह है, जो निरंतर बढ़ रहे है। माउंट एवरेस्ट की हाइट भी हर साल एक सेंटीमीटर से ज्यादा बढ़ रही है। ऐसे हिमालय में अवैज्ञानिक व अंधाधुंध कटिंग तबाही का बड़ा कारण है।
  • सोलन व शिमला में चिकनी मिट्‌टी है। फोरलेन बनाते वक्त मिट्‌टी को डंगों के भीतर या सड़क में डंप किया गया है। अब बारिश में मिट्टी फूल रही है। इससे जगह-जगह लैंडस्लाइड और सड़क धंसने की घटनाएं हो रही है।
  • मंडी और कुल्लू जिले में तबाही का सबसे बड़ा कारण ब्यास में माइनिंग नहीं होना है। सालों से माइनिंग नहीं होने से रिवर बेड फैलता जा रहा है। जो पानी नदी के बीचोबीच बहना चाहिए, वह नदी के किनारे पर बहकर तबाही मचा रहा है। इससे बचने के लिए माइनिंग जरूरी है।
  • नदी किनारे माइनिंग के लिए भारत सरकार से फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट (FCA) लेनी जरूरी होती है। मगर, कई सालों से इसकी अनुमति नहीं मिल पा रही। साल 2018-19 में भी विभाग ने कुछ साइट की ऑक्शन की थी। मगर, तब भी FCA नहीं मिल पाई और जिन्होंने माइनिंग साइट ली थी, उनकी 50% सिक्योरिटी राशि भी जब्त हो गई।
  • PWD महकमे भी उद्योग विभाग को मैटीरियल उठाने के लिए चिट्टी लिख रहा है। इनमें PWD बोल रहा है कि नदी में ज्यादा मैटीरियल हो गया, उसे उठा लिया जाए।
  • कुल्लू और मंडी दोनों जिले में FCA लागू है। इसलिए FCA मंजूरी के बगैर माइनिंग संभव नहीं है। ब्यास की तबाही का यह भी बड़ा कारण है।
  • माइनिंग नहीं होने से ब्यास का रिवर बेड प्री-ऑक्युपाइड है। रही-सही कसर फोरलेन निर्माता कंपनियों ने पूरी की है। सारा मलबा नदी में डंप करने से रिवर बैड और ऊंचा हुआ है। लोकल लोग भी घरों के निर्माण के दौरान निकलने वाले मबले को नदी में डंप करते है, जो कि बरसात में कहर बरपाता है।

पहाड़ बचाने को यह करना जरूरी

इन हालात में तबाही के लिए पूरी तरह कुदरत को दोष देना सही नहीं है। कही न कही मानवीय चूक भी इसके लिए जिम्मेदार है। हिमाचल सरकार को इस तबाही से सबक लेने की जरूरत है।

भविष्य में तबाही से बचने के लिए पहाड़ों की अवैज्ञानिक कटिंग रोकने, ब्यास नदी के रिवर बेड को फैलने देने के बजाय गहरा करने, नदी में जमा माइनिंग मैटीरियल हटाने, नदियों में मलबा इत्यादि की डंपिंग रोकने जैसे प्रयास करने होगे। ऐसा नहीं किया तो कुदरत आगे भी कहर बनकर बरसेगा।

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