12 साल तक के 42% बच्चों का स्क्रीनटाइम 4 घंटे: रिपोर्ट में दावा- इससे ज्यादा उम्र के 10 घंटे मोबाइल फोन-टैबलेट को दे रहे

नई दिल्ली33 मिनट पहले

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वाई-फाई पर चल रहे ट्रैफिक पर नजर रखने वाले डिवाइस हैप्पीनेट्ज कंपनी ने 1500 पेरेंट्स पर यह सर्वे किया है। - Dainik Bhaskar

वाई-फाई पर चल रहे ट्रैफिक पर नजर रखने वाले डिवाइस हैप्पीनेट्ज कंपनी ने 1500 पेरेंट्स पर यह सर्वे किया है।

बच्चों के स्क्रीनटाइम को लेकर एक स्टडी की गई है। उसमें दावा है कि दुनियाभर में 12 साल तक की उम्र के 42 फीसदी बच्चे हर दिन औसतन दो से चार घंटे अपने स्मार्टफोन या टैबलेट से चिपके रहते हैं। वहीं, इससे ज्यादा उम्र के बच्चे दिन का 47 फीसदी वक्त यानी 10 घंटे मोबाइल फोन की स्क्रीन को देखते हुए बिताते हैं।

वाई-फाई पर चल रहे ट्रैफिक पर नजर रखने वाले डिवाइस हैप्पीनेट्ज कंपनी ने यह सर्वे कराया है। इसे 1500 पेरेंट्स पर किया गया है। सर्वे के मुताबिक, जिन घरों में कई डिवाइस हैं, वहां पेरेंट्स के लिए अपने बच्चों के स्क्रीन पर बिताने वाले वक्त को कंट्रोल करना और उन्हें आपत्तिजनक सामग्री देखने से रोकना एक चैलेंज जैसा है।

12 साल से ज्यादा उम्र के 69% बच्चों के पास अपने गैजेट
स्टडी के मुताबिक, 12 साल और उससे ज्यादा उम्र के 69 फीसदी बच्चों के पास अपने टैबलेट या स्मार्टफोन हैं, जिससे वो इंटरनेट पर बिना किसी रोक-टोक के कुछ भी देख सकते हैं। उनमें से 74 फीसदी बच्चे यूट्यूब की दुनिया में खो जाते हैं। वहीं, 71 फीसदी बच्चे गेमिंग ज्यादा पसंद करते हैं।

6 साल की उम्र से मोबाइल देखने वाली बच्चियों को यंग ऐज में होती मेंटल प्रॉबलम
15 मई को यूएस एनजीओ के जरिए सेपियन लैब्स ने भारत सहित 40 से ज्यादा देशों में मोबाइल के इस्तेमाल को लेकर एक स्टडी जारी की थी।

स्टडी में पाया गया था कि एक बच्चे को जितनी जल्दी स्मार्टफोन दिया जाता है, उतनी ही जल्दी उसको मेंटल प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ सकता है।

इस मामले में महिलाओं को मानसिक दिक्कतें आने की ज्यादा संभावना है। नई ग्लोबल स्टडी में 40 से ज्यादा देशों के 18 से 24 साल की उम्र के 27,969 वयस्कों का डेटा इकट्ठा किया गया, जिसमें भारत के लगभग 4,000 वयस्क शामिल थे।

बचपन में स्मार्टफोन से लगातार चिपके रहने की वजह से बच्चों को यंग ऐज में मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

बचपन में स्मार्टफोन से लगातार चिपके रहने की वजह से बच्चों को यंग ऐज में मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

स्टडी में पाया गया कि जिनको 6 साल की उम्र में पहला स्मार्टफोन मिल गया था, उनमें से करीब 74% महिलाओं को यंग ऐज में गंभीर मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। जिन लोगों को 18 साल की उम्र में अपना पहला स्मार्टफोन मिला, उनमें से 46% मानसिक रूप से परेशान थे।

सबसे कम उम्र में भारतीय बच्चों को मिलता मोबाइल, किसी भी काम में नहीं लगाते मन
दुनिया भर में भारतीय बच्चे ऐसे हैं जो कि सबसे कम उम्र में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। पिछले साल मई में जारी हुई एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। इसके मुताबिक, भारत में कम उम्र के बच्चे मोबाइल फोन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, जिसकी वजह से वे ऑनलाइन रिस्क की चपेट में ज्यादा आते हैं।

रिपोर्ट में बताया गया कि इंटरनेट पर बच्चे साइबर बुलीइंग, डेटा प्राइवेसी, ​​​​​इन्फॉर्मेशन लीक जैसी कई तरह की गलत एक्टिविटी की चपेट में भी आ जाते हैं। भारत में दूसरे देशों के मुकाबले साइबर बुलीइंग के मामले कम उम्र के बच्चों में 5% ज्यादा हैं।

इजराइल, इटली के बाद भारत में सबसे सस्ता इंटरनेट
दुनिया में सबसे सस्ते मोबाइल इंटरनेट डेटा के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है। cable.co.uk की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल और इटली के बाद भारत में सबसे सस्ता मोबाइल डेटा मिलता है। भारत में 1 GB इंटरनेट डेटा की कीमत करीब 14 रुपए है। इसके मुकाबले अमेरिका (50 रुपए), जापान (35 रुपए), फ्रांस (20 रुपए) और चीन (36 रुपए) में अधिक कीमत पर डेटा मिलता है।

स्मार्टफोन, इंटरनेट और कॉलिंग रेट सस्ता होने से परिवार बच्चों को मोबाइल फोन पर ज्यादा वक्त बिताने की छूट देता है, जिससे बच्चों का स्क्रीनटाइम बढ़ जाता है।

कुछ ऐसी बातें जो पेरेंट्स शुरुआत से अपने बच्चों को सिखा सकते हैं जानिए इस ग्राफिक में-

सस्ते स्मार्टफोन की स्क्रीन ज्यादा खतरनाक
Cable.co.uk की 2021 की स्टडी के मुताबिक, सबसे कम कीमत के मोबाइल भारत में मिल रहे हैं। इसके बाद श्रीलंका, कजाखस्तान, रूस और मिस्र का नंबर आता है।

सस्ते मोबाइल के मानकों को लेकर आईटी एक्सपर्ट दिनेश भट्‌ट का कहना है कि अभी देश में सस्ते मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली हार्मफुल रेज (Rays) को चेक करने का न तो कोई पैरामीटर है और न ही किसी तरह की गाइडलाइन सरकार की तरफ से दी गई है।

लोकल सर्कल के एक सर्वे में पाया गया कि करीब 55 प्रतिशत बच्चों के पेरेंट यह मानते हैं कि 9 से 13 साल के बच्चे पूरे दिन मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। कभी मम्मी का तो कभी पापा का। अन्य अध्ययनों में भी इसी बात को उजागर किया गया है।

सोते समय फोन देखते हैं 24% बच्चे, उम्र बढ़ने के साथ बढ़ रहा टाइम स्पेंट
पिछले साल मार्च में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने संसद में राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग (NCPCR) की एक स्टडी का हवाला देते हुए बताया था कि देश में करीब 24 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो सोने से पहले स्मार्टफोन देखते हैं।

स्टडी में यह भी पाया गया कि जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है तो स्मार्टफोन को लेकर उसका रुझान और समय भी बढ़ता जा रहा है। जबकि 37 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो स्मार्टफोन के इस्तेमाल की वजह से किसी भी काम पर सही ढंग से फोकस नहीं कर पाते हैं यानी बच्चों की एकाग्रता की क्षमता में लगातार गिरावट आ रही है।

ग्राफिक के जरिए समझीए किन देशों में सबसे ज्यादा मोबाइल स्क्रीन देखते हैं बच्चे

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